भीड़ में शायद कही खो गया हूँ लगता है
न उठूँगा कुछ इस तरह सो गया हूँ लगता है |
कोशिश तो बहुत की पहचान बनाने की
इच्छाए तो थी पता नहीं क्या क्या पाने की |
पर हर चाह कब किसी की पूरी होती है
हर नाकामी के पीछे एक मजबूरी होती है |
वैसे तो कभी भी हार नहीं मानता हूँ में
क्यूकि खुद को अच्छी तरह जनता हूँ में |
अपनी नाकामी पर अफ़सोस तो होता है
कभी -२ मन एकांत में चुपके से रोता है |
पर हार शाम के बाद सवेरा आता है
करके अँधेरा दूर संग रौशनी लाता है |
कह दो इन नाकामियों से डरता नहीं हूँ मे
दुनिया वालो की परवाह करता नहीं हूँ में |
कल अपनी दुनिया खुद ही बनाऊंगा में
ओर अपने ख्वाबो से फिर उसे सजाऊंगा में |
good . keep on writing
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