Friday, January 18, 2013

भीड़ में शायद कही खो गया हू लगता है



भीड़ में शायद कही खो गया हूँ लगता है
न उठूँगा कुछ इस तरह सो गया हूँ लगता है |

कोशिश तो बहुत की पहचान बनाने की
इच्छाए तो थी पता नहीं क्या क्या पाने की  |

पर हर चाह कब किसी की पूरी होती है
हर नाकामी के पीछे एक मजबूरी होती है |

वैसे तो कभी भी हार नहीं मानता हूँ में
क्यूकि खुद को अच्छी तरह जनता हूँ में |

अपनी नाकामी पर अफ़सोस तो होता है
कभी -२ मन एकांत में चुपके से रोता है |

पर हार शाम के बाद सवेरा आता है
करके अँधेरा दूर संग रौशनी लाता है |

कह दो इन नाकामियों से डरता नहीं हूँ मे
दुनिया वालो की परवाह करता नहीं हूँ में |

कल अपनी दुनिया खुद ही बनाऊंगा में
ओर अपने ख्वाबो से फिर उसे सजाऊंगा में |

1 comment:

ये थी मेरे मन की बात, आपके मन में क्या है बताए :